Monday, February 23, 2009

जिन्दगी में कोई बड़ा सुख नहीं है,
इस बात का मुझे बड़ा दु:ख नहीं है,
क्योंकि मैं छोटा आदमी हूँ,
बड़े सुख आ जाएं घर में
तो कोई ऎसा कमरा नहीं है जिसमें उसे टिका दूं ।

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मैं असभ्य हूँ क्योंकि खुले नंगे पांवों चलता हूँ

मैं असभ्य हूँ क्योंकि धूल की गोदी में पलता हूँ
मैं असभ्य हूँ क्योंकि चीरकर धरती धान उगाता हूँ
मैं असभ्य हूँ क्योंकि ढोल पर बहुत जोर से गाता हूँ

आप सभ्य हैं क्योंकि हवा में उड़ जाते हैं ऊपर
आप सभ्य हैं क्योंकि आग बरसा देते हैं भू पर
आप सभ्य हैं क्योंकि धान से भरी आपकी कोठी
आप सभ्य हैं क्योंकि ज़ोर से पढ़ पाते हैं पोथी
आप सभ्य हैं क्योंकि आपके कपड़े स्वयं बने हैं
आप सभ्य हैं क्योंकि जबड़े खून सने हैं

आप बड़े चिंतित हैं मेरे पिछड़ेपन के मारे
आप सोचते हैं कि सीखता यह भी ढंग हमारे
मैं उतारना नहीं चाहता जाहिल अपने बाने
धोती-कुरता बहुत ज़ोर से लिपटाये हूँ याने !

रचनाकार: भवानीप्रसाद मिश्र

कितना सटीक लिखते थे भवानीप्रसाद मिश्र, मेरा उनकी कविताओं से लगाव इसलिये भी ज्यादा है क्योंकि उनका नाम सिवनी मालवा,होशंगाबाद, नरसिंहपुर और जबलपुर जैसी शहरों से जुड़ा है। मेरे लड़कपन की यादों मे से एक, उनकी जयंती भी है जो हम हर साल मनाते थे कवि गोष्टी होती थी। उनकी कवीत्ताओं मे कुछ खास था। जिसे मै उस समय गहराई से समझ नही पता था, पर फिरभी जितना समझ भी पाता था उतना काफी था मेरे दिलोदिमाग पर उनकी छाप छोड़ने के लिए। २० फरवरी को बरबस ही उनकी याद आ गई................................

7 comments:

  1. भाई वाह! क्या खूब कहा |

    जिन्दगी में कोई बड़ा सुख नहीं है,
    इस बात का मुझे बड़ा दु:ख नहीं है,

    gr8 .......... ब्लॉग इस दुनिया में आपका स्वागत है ........... मुझे देखे स्वच्छ सन्देश और हिंदुस्तान के दर्द पर


    शुभ कामनाएं !!!

    सलीम खान

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  2. ब्लॉग जगत में आपका स्वागत

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  3. Bahut hi sundar kavita dhundh kar laye aap. Swagat.

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  4. Mishra ji ki is prabhavi rachna ko taaza karne ke liye dhanyawaad.

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  5. really superb one.. like it too much

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