Tuesday, March 3, 2009

प्रेम पागल



वो हमारे मोहौल्ले मे घूमता रहता हम सारे बच्चे उसके पीछे भागते रहते और वो ख़ुशी से हमारे आगे दौड़ता। सारे बच्चे उसे दिन रात तंग करते, पर वो कभी किसी पर गुस्सा नहीं करता। मोहल्ले वाले उसे जो भी देते वो खा लेता।हमारे मोहोले के दोनों तरफ मंदिर थे, एक तरफ नर्मदा मंदिर और दूसरी तरफ राधे श्याम मंदिर। आने जाने वाले लोग उसे कुछ ना कुछ दे दिया करते थे। धीरे धीरे प्रेम ने हमारे मोहल्ले को अपना घर बना लिया। कभी वो किसी के ओटले पर सो जाता तो कभी बालाजी के मन्दिर में ,अब लोग भी उससे घुलने लगे थे। मेरी माँ जो पान खाने की शोकीन थी वो उसे चवन्नी दे कर पान मंगवा लिया करती थी और पॉँच पैसे जो बचते थे वो उसे दे दिया करती थी। फिर हर रात को वो हमारे घर आने लगा और मेरी माँ से बोलता दीदी चवन्नी देदो तुम्हरे लिये पान लाऊंगा। पान लाने के बाद बचे पॉँच पैसे वो मेरी माँ को दे दिया करता और मुस्कुरा कर इंतजार करता की माँ वो पॉँच पैसे उसे देदें। हम रात मे उसे खाना दे दिया करते थे, लोग उसे अपने पुराने कपडे भी दे दिया करते थे। अब वो हमारी जिन्दगी का एक हिस्सा बन गया था. जब मै स्कूल से आता वो उल्टे सीधे चहरे बना कर मुझे हँसता. वो ऊँचा लंबा था लोग कहते थे की वो किसी अच्छे परिवार का था जमीन जायदाद को ले कर भाइयों के बीच हुए झगडे में सर पर चोटलगने से वो पागल हो गया और उसके घरवाले उसे यहाँ छोड़ गए कई लोग कहते की वो किसी लड़की से प्यार करता था पर जब उस लड़की की शादी हो गई तो प्रेम पागल हो गया। पर कोई भी असल में नहीं जानता था की वो कहाँ से आया।

समय बीतता गया अब पूरे मोहल्ले को वो अपना सा लगने लगा था। मै उससे अपने घर की सीढियों पर बैठ कर बाते किया करता शायद वो ही था जो मेरी बे सर पैर की बातों को धयान से सुनता। जब हम लोग छुटियों मे कहीं जाते तो वो मेरी माँ से कहता दीदी जा रहे हो चिंता मत करना में हूँ तुम आराम से जाओ। वो हमारे परिवार का एक सदस्य बन गया था, अब वो हमारा मोहल्ला छोड़ कर कहीं नहीं जाता। धीरे धीरे समय बदला मौसम बदला ठण्ड आगई दिसम्बर के महीने में अचानक हमारे कस्बे में चोरी की वारदाते होने लगी कई सोने चांदी के दुकानों में रात को चोरियां हो गयी. हमारे मोहल्ले में जो एक मात्र सोने चांदी के सेठ थे उनकी चिंता बड़ गई वो हमारे मोहल्ले का सब से अमीर और और सब से कंजूस परिवार था. अमीर होना और कंजूस होना एक दुसरे के पर्यायवाचक होते हैं शायद। सेठ ने मोहल्ले वालों के बैठक बुलाई वो चाहता था की हम प्रेम को मोहल्ले से बाहर कर दें. उसे प्रेम पर शक था। सेठ के मुताबिक प्रेम चोरो से मिला हुआ था और उसके यहाँ रहने से हमारे महोल्ले में चोरी की ज्यादा सम्भावना थी। कई लोगों ने विरोध करना चाहा पर सेठ के रुतबे ने सब को चुप कर दिया।छोटे कस्बों में पैसे वोलों की बातों का वजन ज्यादा होता है उस दिन से लोगों ने प्रेम को खाना देना बंद कर दिया अब बच्चे भी उसके साथ नही खेलते। उसके पास दिसम्बर की ठण्ड सहने लायक कपडे भी नहीं थे, मै रात में चुपचाप अपने घर से चुरा कर रोटी और आचार उसे दे आया करता था कभी कभी अपना टिफिन बचा कर शाम को उसे दे दिय करता। वो आधापेट खा कर भी खुश था वो हमारा मोहल्ला छोड़ कर नहीं गया. सेठ को यह डर सता रहा था की उस की दुकान में चोरी ना हो जाए एक दिन सेठ के लोगो ने प्रेम को पीटा भी। अब लोग उसे अपने घरों के सामने सोने भी नहीं देते थे, ठण्ड के मौसम में वो बिना गर्म कपडों के सड़क पर सोता था। अब वो चुपचाप ही रहता मेरी माँ भी उसे अब पान लेने नहीं भेजती। वो हमारे घर आता बाहर खडा रहता मेरी माँ ना खुद बाहर जाती ना मुझे बाहर जाने देती वो कुछ देर इंतजार करता फिर बड़बड़ाता हुआ चला जाता। एक दिन सुबह सुबह जब मै स्कूल जाने के लिये तैयार हो कर बाहर निकला तो देखा की मोहल्ले के मुहाने पर भीड़ जमा है। मै जब भीड़ को काट कर अंदर पहुंचा जो मैने देखा उसे मै आज तक नहीं भूल पाया वंहा नाली के पास प्रेम पड़ा था उसका पूरा शरीर सूज हुआ था, उसकी आंखे सूज गई थी उसके चहरे पर चोट के कई निशान थे उसका शरीर अकड़ गया था। लोग बातें कर रहे थे की लगता है ठण्ड से मर गया काफी दिनों से भूखा भी था, शायद रात मे उसे किसी ने पीटा भी था। सब जानते थे किसने उसे पीटा था।मैने अपनी जिन्दगी मे पहली बार प्राण हीन शरीर देखा था। मुझे नही मालूम मै वहां कितनी देर खड़ा रहा। मुझे तब होंश आया जब मुझे मेरी माँ वंहा से छींच कर ले गई। मै उस दिन स्कूल नहीं गया। दोपहर मे नगरपालिका वाले प्रेमको उठा कर ले गये। दूसरे दिन सुबह अचानक मेरी आंख शोर शराबे से खुली मेरी माँ और पापा बहार खडे थे। मै भी आँख मलता बाहर चला गया, तब मालूम हुआ की सेठ की सोने चाँदी की दुकान मै रात चोरी हुई, और सारे जेवरऔर नगदी चोर ले गए।

मुझे आज भी इतने साल बाद प्रेम याद है वो गरमीयों में हमारे घर पानी पीने आता, मै उसे ओटले पर खडा हो जगसे उसे पानी पिलाता वो नीचे खडा हो कर चुल्लू से पानी पीता, वो पूरा जग पानी पी जाता। पर पानी पीने के बादउसके चहरे पर जो संतोष दिखता वो आलोकिक था. उसे देख कर लगता की आदमी को जीने के लिये कितनी कमचीजों की जरूरत है और एक हम है जो इतनी सारी भौतिक सुख सुविधाओं में रह कर भी वो
सुख और संतोष नहीं पा सकते जो उस पागल को पानी पी कर मिलाता था। वो परायों के बीच में भी अपनापन ढूँढ़ लेता था और हम अपनों को भी पराया कर देते हैं वास्तव में कभी कभी मै सोचता हूँ प्रेम पागल था या हम सब पागलहैं................................................


10 comments:

  1. दोस्त बहुत ही मार्मिक कहानी कह दी ...दिल भर आया

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  2. बेहतरीन संस्मरण है आपका...हमारे समाज के दोगले पन की बखिये उधेड़ता हुआ...सही कहा आपने पागल कौन हैं हम या प्रेम?? मेरे पास शब्द नहीं है आपके इस पोस्ट की प्रशंशा के लिए...दिल से वाह निकल रही है...अज्ञेय जी की एक छोटी सी कविता याद आ रही है शायद आपने भी पढ़ी हो:
    "सांप
    तुम शहर में रहे नहीं
    सभ्य भी हुए नहीं
    डसना कहाँ से सीखा
    ज़हर कहाँ से पाया????"
    नीरज

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  3. आप बचपन में भी कितने परिपक्व थे। और प्रेम में आयु से परिपक्व होने के बावजूद बच्चों जैसी सरलता भरी थी। पागल न वो था न आप। पागल वे हैं जो आप दोनों को पागल कहें।

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  4. धन्यवाद नीरज जी मेरी पहली रचना पर प्रोत्साहित करने के लिये . उम्मीद है, समय-समय पर अपनी राय इसी प्रकार देते रहेंगे.

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  5. भाई जान,

    सब समझ का भी फेर है.
    दूसरों को पहचानने में सदा ही गलती होती है.

    क्योंकि हमारे माप दंड तथ्य परक है ही नहीं, समय देना नहीं चाहते और फैसला कर डालते हैं.
    मेरा तो मानना यह है की जितना बड़ा अपराध , उसके पीछे उतने ही पढ़े लिखे पर कुत्सित मानसिकता के व्यक्ति का हाथ है.................... ज्यादा लिकोंगा तो लेख हो जायेगा, समझदार को इशारा काफी है.

    जरूरत, संस्कार, पैदा करने की है, जो की लुप्तप्राय हो गया है. इसी का नतीजा घर-घर में द्रिस्तिगत हो रहा है.
    पैसे के ही पीछे सारी दुनिया वास्तविक रूप से पागल हो गई है, और ये, या कहें ऐसे ही पागल लोग उन लोगों को , जिन्हों ने जनसेवा, मानवता सेवा में सर्वस्व त्याग दिया, उन्हें पागल सिध्ध करने को सदा तत्पर रहते हैं.

    सुन्दर भावः से लिखे sansmaran और vivechna का मैं tahe दिल से स्वागत करता हूँ.

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  6. Puneet ji,
    Niraj ji ke kathan se sahmat hun bhot hi marmik rachna hai aapki...sidhe dil me utarti hui...kya kahun...nishbad hun...!!

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  7. Realy it is heart touching story,I had not know about you that you are a such a good writer.
    (Truly said we are mad not Prem)
    Alok Singh

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  8. Main Pagal Mera Manwa Pagal, Pagal Meri Preet Re - this is an old Indian film song which I heard from a little angel very differently - main bhi pagal, tu bhi pagal. To die in ignominy is not what hurts. It realy hurts when you behave inhumanely. Our saintly souls have always been praying for hate, despise and negligence for world at large to ensure they have all the time to converse with the Creator, our loving God uncle. Prem of this story only reminds of the highest order of his spiritual attainments which alas ! no one in and around him could sense or feel.

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  9. Ye Atyant he hariday sparshi kahani hai...jo mann ko to chhoti hai saath he aaj ke samajik vyavstha per 'Teekha Vyang' hai.

    mere pass shabad nahi hain kehne ke liye... too gud...
    u r Genious...

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  10. very good Puneet,people should not forget that they have a good heart inside them,but they hide it with a fake one....
    Priyanka Shishodia

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